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संस्कृति का स्वरूप

 


विश्व की सर्वोत्कृष्ट संस्कृति भारतीय संस्कृति है, यह कोई गर्वोक्ति नहीं अपितु वास्तविकता है ।। भारतीय संस्कृति को देव संस्कृति कहकर सम्मानित किया गया है ।। आज जब पूरी संस्कृति पर पाश्चात्य सभ्यता का तेजी से आक्रमण हो रहा है, यह और भी अनिवार्य हो जाता है कि, उसके हर पहलू को जो विज्ञान सम्मत भी है तथा हमारे दैनन्दिन जीवन पर प्रभाव डालने वाला भी, हम जन−जन के समक्ष प्रस्तुत करें ताकि हमारी धरोहर- आर्य संस्कृति के आधार भूत तत्व नष्ट न होने पायें ।।


भारतीय संस्कृति का विश्व संस्कृति परक स्वरूप तथा उसकी गौरव गरिमा का वर्णन तो इस वाङ्मय के पैंतीसवें खण्ड 'समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान' में किया गया है किंतु इस खण्ड में संस्कृति के स्वरूप, मान्यताएँ, कर्म काण्ड- परम्पराएँ पद्धतियाँ एवं अंत में इसके सामाजिक पक्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है ।। इस प्रकार दोनों खण्ड मिलकर एक दूसरे के पूरक बनते हैं ।।

भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।। इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं ।। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है ।। मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पायें, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है ।। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है ।। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।

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