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हमारे व्यक्तिगत प्रतिनिधि और उनके दौरे

हमारे व्यक्तिगत प्रतिनिधि और उनके दौरे







गत जून में और इसी अंक में छपे ‘महाकाल और उसका युगनिर्माण प्रत्यावर्तन’ लेख को तथा जुलाई के अंक में प्रस्तुत भविष्य की सम्भावनाओं को पाठकों ने ध्यानपूर्वक पढ़ा होगा तो वे निश्चित रूप से इस निष्कर्ष पर पहुँचे होंगे कि वर्तमान समय साधारण नहीं असाधारण समय है। ऐसे उथल-पुथल भरे अवसरों पर प्रबुद्ध आत्माओं के कंधों पर कुछ विशेष उत्तरदायित्व आया करते हैं और उन्हें वे साहसपूर्वक भी करने पड़ते हैं।
युग परिवर्तन के संध्याकाल को एक पुण्य पर्व की तरह माना जाना चाहिए और इसे उपेक्षा तथा आलस में नहीं बिताया जाना चाहिए। समय निकल जाता है और सामयिक कर्तव्य पालन नहीं किये जाते तो उसके लिये केवल पश्चाताप ही करना शेष रह जाता है। पिछले स्वाधीनता संग्राम में जिसने साहसपूर्वक सामयिक कर्तव्यों का पालन किया उन्होंने यश, पद आत्म-सन्तोष आदि बहुत कुछ पाया पर जो लोग झाँकते रहे उन्हें उस समय की भूल आज शूल सी चुभती है। अब वैसा समय फिर कहाँ आने वाला है।
राम की सेना में सम्मिलित होने वाले साहसी रीछ वानरों ने खोया कम पाया ज्यादा। दूसरे रीछ वानर भी उन दिनों रहे होंगे। वे उस समय अपने को बुद्धिमान मानकर उस झंझट से बचे बैठे भी रहे होंगे, पर उनकी वह बुद्धिमानी कसौटी पर सही सिद्ध नहीं हुई। वे उस सुअवसर को गंवाकर सम्भवतः पछताते ही रहे होंगे।
लाखों वर्ष बाद वैसा ऐतिहासिक समय अब फिर आया है जिसमें प्रबुद्ध आत्माओं को अपना वर्चस्व एवं गौरव प्रकट करने का अवसर मिलेगा। भीरु और संकीर्ण लोगों के लिये बहाने बहुत हैं पर जिनमें आन्तरिक प्रकाश विद्यमान है वे कठिन से कठिन परिस्थिति में रहते हुए भी अपनी भावनात्मक प्रेरणा के आधार पर थोड़ा-थोड़ा करते रहने पर भी बहुत बड़ी मंजिल पार कर सकते हैं।
अखण्ड ज्योति परिवार में बड़े प्रयत्नपूर्वक लम्बी खोजबीन के उपरान्त आत्मिक पूँजी से सुसम्पन्न पूर्व जन्मों की संस्कारवान आत्माओं को एकत्रित किया गया है । वे हमारे साथ व्यक्तिगत रूप से भी चिरकाल से घनिष्ठतापूर्वक संबद्ध हैं। इनका अवतरण इस महत्वपूर्ण अवसर पर महाकाल का कुछ विशेष प्रयोजन पूर्ण करने के लिये हुआ है। इन्हें अपने कंधों पर आई हुई जिम्मेदारी पूरी करनी ही चाहिए। युगनिर्माण की पुण्य प्रक्रिया सम्पन्न करने के लिये अपना आवश्यक योगदान देना चाहिए। उचित यही है कि रोटी कमाने तथा शरीर मात्र की आवश्यकताओं का जिस प्रकार ध्यान रखा जाता है उतनी ही तत्परता अपने महान आध्यात्मिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिये भी बरती जानी चाहिए।
‘अपनों से अपनी बात’ स्तम्भ के अंतर्गत हम एक वर्ष से मार्मिक उद्बोधन देते चले आ रहे हैं। यह सिलसिला देर तक चलता नहीं रह सकता। हमारा कार्यकाल मात्र चार वर्ष शेष रह गया है। युग देवता की पुकार तीव्र होती चली जा रही है। कर्तव्य पालन की ठीक घड़ी सामने आ पहुँची। ऐसी विषम परिस्थितियों में समझाने फुसलाने और घिघियाने, दाँत निपोरने की विडम्बना को समाप्त ही किया जाता है । जो जाग सकते हों वे जाग जाएं। जिन्हें जागते हुए भी सोने का बहाना करना है उनसे बार-बार कहना सुनना भी बेकार है।
स्पष्टतः युग परिवर्तन की पुण्य प्रक्रिया का श्रीगणेश शुभारम्भ करने की स्वर्ण युग के बीजारोपण की महान जिम्मेदारी अखण्ड ज्योति परिवार के सदस्यों पर आई है। उसे महाकाल ने विचार-पूर्वक सौंपा है। अस्तु यह आवश्यक समझा गया है कि अन्तिम उद्बोधन के रूप में एक बार फिर उन सबको झकझोर कर निर्धारित दिशा में चलने के लिये तत्पर किया जाय। हमें स्वयं ही परिजनों के घर इस पुण्य प्रयोजन के लिये जाना था। पर समय कम और कार्य अधिक होने के कारण इस प्रयोजन के लिये अपने परम विश्वस्त व्यक्तिगत प्रतिनिधि एवं संदेशवाहक भेज रहे हैं।
युगनिर्माण-योजना के जुलाई अंक में श्री रमेश चन्द्र शुक्ल के बिहार दौरे की और अगस्त अंक में लीलापति शर्मा के मध्य प्रदेश दौरे की सूचना छपी है। इन दोनों की आत्मिक उत्कृष्टता, प्रामाणिकता एवं अब तक की परखों के आधार पर उन्हें उस योग्य माना गया है कि उन्हें अपने व्यक्तिगत प्रतिनिधि का कार्य भार सौंपा जा सके। एक-एक करके यह लोग देश भर के सभी प्रान्तों का दौरा करेंगे। वह प्रत्येक परिजन से संपर्क स्थापित कर उन्हें उनके कर्तव्यों की दिशा में अधिक सतर्क एवं तत्पर होने का अनुरोध करेंगे आशा है पाठक उन्हें अपने यहाँ आने पर उचित महत्व प्रदान करेंगे और ध्यानपूर्वक उन्हें सुनेंगे।
आत्म-निर्माण, परिवार-निर्माण को त्रिविध युग परिवर्तन प्रक्रिया को हमें अपने दैनिक जीवन में अन्य साँसारिक कार्यों की तरह ही स्थान देना चाहिए। उपासना में भावना का समावेश और हर दिन नया जन्म वाली साधना पद्धति आत्म-निर्माण का उद्देश्य पूरा करेगी। ज्ञान-यज्ञ अपने घर में रहने वाले तथा घर से बाहर बिखरे पड़े परिवार का अभिनव निर्माण करेगी। समाज-निर्माण के लिये यों शतसूत्री कार्यक्रम बहुत पहले घोषित किया जा चुका है पर उसका आरम्भ अपने परिवार के सदस्यों को शाखा संगठन के अंतर्गत संगठित करने और जन्मदिन मनाने की प्रक्रिया द्वारा आरम्भ किया जाना चाहिए। जहाँ यह दो कदम आगे बढ़ गये वहाँ अन्य रचनात्मक एवं संगठनात्मक कार्यक्रम की पूर्ति हो सकने की भी आशा की जा सकेगी।
हमारे संदेशवाहक प्रतिनिधि प्रत्येक परिजन से मिलने भेजे जा रहे हैं। वे उनसे पूछेंगे कि उनमें जो पढ़ा, सुना है उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई? क्या आन्तरिक स्फुरण हुआ? इस संदर्भ में अन्तरात्मा ने क्या प्रकाश दिया? और उस प्रकाश के अनुरूप कुछ करने के लिये कितना साहस उभरा? इन प्रश्नों के उत्तर जो मिलेंगे, उससे हमें वस्तु स्थिति का पता चल जायगा और उसी आधार पर अपने प्रयत्नों की असफलता का मूल्याँकन करेंगे। अपनी आत्मा और अपने परमात्मा के सामने इसी मूल्याँकन के आधार पर हमें भी अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करना है।
जिन प्रबुद्ध परिजनों के पास हमारे प्रतिनिधि पहुंचे उनका कर्तव्य है कि अपने आवश्यक कार्यों को छोड़ कर भी थोड़ा समय निकालें और अपने क्षेत्र में भ्रमण करने के लिये इन प्रतिनिधियों के साथ रहें और उनका प्रयोजन सफल बनाने में आवश्यक सहयोग करें। स्थानीय कार्यकर्ताओं के सहयोग से ही उस क्षेत्र के परिजनों के साथ संपर्क स्थापित कर सकना ठीक तरह सम्भव हो सकता है।
अभी श्री रमेश चन्द्र शुक्ल को बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वीय जिलों के दौरे पर और पं. लीलापति शर्मा को मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में भेजा जा रहा है। किन्तु यह दौरे आगे देश भर में होंगे। उसकी सुविधा के लिये परिजन अपने-अपने जिलों के नक्शे बाजार से खरीद कर या हाथ से ऐसे बना कर भेज सकें, जिनमें रेल और मोटर मार्ग भी दिखाये गये हों तो प्रतिनिधियों को यात्रा में सुविधा मिलेगी, जो अपने जिलों में उनके साथ रह सकने की स्थिति में हों वे भी अपने नाम नोट करा दें ताकि समय पर उनका सहयोग लिया जा सके।

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